Thursday 25 April 2019

बढ़ती गर्मी में आपके छोटे से सहयोग से कई बेज़ुबान जानें बच सकती हैं। सूरज आग उगल रहा है, धरती गर्म हो रही है, पशु पक्षी पानी के बिना तडप रहे हैं, जिनके घर लाखों करोडों खर्च कर बने हैं वे भी बाहर निकलकर कहीं पेडों की छांव अथवा झोपडी में शरण लेना चाहते हैं, क्‍या होगा जब 43 डिग्री सेल्सियस से और आगे बढकर तापमान 55, 60 होगा तो कैसे रहेगा मनुष्‍य व जीवधारियों का जीवन, अब तो बस भइया एक ही रास्‍ता है कि किसी प्रकार धरती का श्र्रगार पेड लगाकर किया जाया अब तो हम अपने बच्‍चों को नहीं दर्शन करा सकते गिदधों का, गौरैया भी विलुप्‍त हो रही हैं हमारे बीच से, क्‍या वह घोसला हम अब देख सकते हैं जो बारीकी से कई महला बनाती थीं फरगुददी चिडियां, क्‍या वह खपरैल का घर जिसमें कोठा होता था, गर्मी जाडा व बरसात तीनो मौसमों में वह मकान वातानुकूलित रहता था, क्‍या उसका आनन्‍द हम गर्मी में ले पायेंगे, वह खंभिया, दालान कहां चली गयी, टोडा, निगस्‍ता, धरन, बडेर, डोकी, पटूका को अब कौन बतायेगा, दीवाली आने पर पोखरे से मिटटी कौन लायेगा कि मिटटी के घर की लिपाई करनी है, उन घरों की तिरबन्‍नी को भी हम सभी भूल जायेंगेा अब तो एक ही रास्‍ता है कि हर परिवार का एक सदस्‍य एक एक विरवा रोपित करे व उसे गोद ले, जन्‍म दिन, मूल शान्ति, वैवाहिक कार्यक्रम, त्र्योदशाह जैसे अवसर पर एक व्रक्ष जरूर लगायें, पानी की बर्बादी रोकें क्‍योंकि अब धरती की कोख सूख रही है जो पानी हमने संचित किया था वह अब समाप्‍त हो जायेगा, बरसात के पानी को धरती के भीतर डालें, पालथिीन का प्रयोग न करेंा साग सब्‍जी झोले में लायेंा अन्‍यथा हमारे ही वंशज हमें कोसेंगे और हमें एक लांछित पीढी के रूप में याद करेंगेा

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