Wednesday, 4 March 2020

किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च । दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम् ॥ भावार्थ :बहुत कहने से क्या ? करोडों शास्त्रों से भी क्या ? चित्त की परम् शांति, गुरु के बिना मिलना दुर्लभ है ।आज पुनः अपने आपको कृतार्थ महसूस कर रहा हूँ , 21 बर्षो बाद गुरु जी से आशीर्वाद प्राप्त हुआ।आज भी गुरु जी उतने ही सजग ओर सम्परित है शिक्षा को लेकर ऒर अनेक छत्रों का जीवन बनाना में निरंतर कर्मठ हैँ।।मैं जितना भी लिखूं कम होगा।आज फिर से अपने आप को छात्र जैसा महसूस कर रहा हूँ।#jkdubeybjp

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