Friday, 11 January 2019

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ *हमारे द्वारा चलाये गये अभियान के लिए मेरे अनुज ने एक कविता प्रस्तुत की हैं। उसको में आपके समक्ष रख रहा हूँ।**

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
#BetiBachaoBetiPadhao
****हमारे द्वारा चलाये गये अभियान के लिए मेरे अनुज ने एक कविता प्रस्तुत की हैं। उसको में आपके समक्ष रख रहा हूँ।****
ो नन्ही , नन्हा सा बचपन
कोमल शीतल, निर्मल तनमन
फिर भी इतने सूझ बूझ से
पूरा घर चलाती है
क्यूँ बेटी ही न जाने
समझ किसी की न आती है
बाबा के झुकते कंधे
माई के थकते कंधों पर
हर दिन बाम लगाती है
फिर भी न जाने क्यूँ
बेटी समझ किसी को न आती है
इस घर से उस घर मे जाकर
गौरव मान बढ़ाती है
निराशाओं का ढेर अपने दामन
समेट ले जाती है
फिर भी न जाने ,,,,,,,,,,,,,,,
घर के मान की खातिर
इक पग भी न बढ़ाती है
मा बाबा के अभिमान को
खुद स्वाभिमान बनाती है
इसलिए
मुझे तो बेटी क्या होती है
भलीभांति समझ आती है
छोटे से कंधें और बस्ता
कहाँ उठाए जाती है
बेटी को रोको तो जाकर
वो भागे भागे जाती है
कहती पढ़ लिख कर
बाबा का जूता में सिलवाऊंगी
मम्मी के लिए नया स्वेटर
बुना बुनाया लाऊंगी
ये आशाओं के जलते दीपक
तब सारे बुझ जाते हैं
जब पलक झपकते माँ बाबा
ही इकदम बदल से जाते हैं
आँगन नया पुराना जीवन
दामन में लपेटे जाती है
तब बेटी विदा हो जाती है
नया सवेरा नई राह
नई कली ओर नयी चाह
वो बछिया भी बड़ा रुलाती है
जिसको बेटी पहले कभी
रोटी डालने जाती है
तो सोचो मा बाबा की
मुझको कित्ती याद सताती है
अपनी सारी बाते जाकर
कलियों को सुनाती है........
धन्यबाद...

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